बुधवार, 30 अप्रैल 2008

धीरे-धीरे छा जाएगा ब्लॉगवाद

मोहल्‍ला वाले अविनाशजी ने एनडीटीवी की वेबसाइट एनडीटीवी खबर पर यह लेख लिखा है, आप लोगों की सुविधा के लिए यह यहां हूबहू दिया जा रहा है। आप इसे एनडीटीवी खबर पर भी पढ सकते हैं।
सृजनशिल्पी हिन्दी के शुरुआती ब्लॉगर हैं, संसद भवन में नौकरी करते हैं। असल नाम कुछ और है और ज़ाहिर न करने की नैतिक मजबूरी नौकरी से जुड़ी है। घुघूती बासूती गुजरात के एक शहर में रहती हैं। 60 पार की यह महिला कई गंभीर व्याधियों से जूझ रही हैं और ब्लॉगिंग उनके लिए पीड़ा हरने वाले औजार की तरह है। वह अपने ब्लॉग पर कविताएं लिखती हैं और अपने समय से बातचीत करते हुए कई सारे सवाल भी खड़े करती हैं। अनामदास लंदन में पत्रकार हैं और हिन्दी में उनका ब्लॉग सबसे संजीदा और साफ-सुथरा माना जाता है। एक आस्तीन का अजगर है, जो अखाड़े का उदास मुगदर के नाम से ब्लॉग चलाते हैं। कहां रहते हैं, क्या करते हैं, किसी को नहीं पता, लेकिन इन दिनों प्रेम कथाओं की बेहद मार्मिक सीरीज़ की वजह से वह ख़ूब चर्चा में हैं।
ये तमाम नाम हिन्दी ब्लॉगिंग के वे चेहरे हैं, जो लोगों के सामने एक समानांतर रेखा के रूप में ज़ाहिर हैं। इनके अलावा सैकड़ों ऐसे लोग हैं, जो मूल नाम की केंचुल उतारकर अपरिचित-अनाम नामों से ब्लॉगिंग की पगडंडी पर टहल रहे हैं। नाम-गाम-पता वाली किताबी दुनिया से अलग अंतर्जाल की आभासी दुनिया में ये ख़ामोशी से खुद को अभिव्यक्त करते रहना चाहते हैं। इनमें से ज्‍यादातर अंग्रेज़ी अच्छी-तरह जानने-समझने वाले लोग हैं, लेकिन मादरी ज़बान में अपने अदृश्य एकांत को लिखना इन्हें सुख देता है, इसलिए ये हिन्दी में ब्लॉगिंग करते हैं।
ताक़तवर हो चले मीडिया की जगज़ाहिर सीमाओं के बीच ब्लॉग ऐसा हथियार है, जिसकी चाभी चंद लोगों के हाथ में नहीं है। यह एक सामाजिक हथियार है और अपनी बात कहने के लिए सबसे अधिक लोकतांत्रिक मंच, जहां फिलहाल न माधो से लेना पड़ता है, न ऊधो को देना पड़ता है। 2004 में जब सुनामी आई थी, इसकी ताक़त का अंदाज़ा हुआ था। जान-माल के नुक़सान की सरकारी गिनतियों के अलावा सच तक पहुंचने का कोई स्रोत नहीं था। ऐसे में कुछ लोगों ने अपने साथ गुज़र रही दिक्कतों को ब्लॉग पर लिखना शुरू किया। तब जाकर सुनामी की डरावनी कहानियों के हज़ारों पाठ दुनिया के सामने थे।
'90 के दशक में ब्लॉगिंग दुनिया के सामने आई, लेकिन हिन्दी में यह इसी सदी की घटना है। 21 अप्रैल, 2003 को आलोक कुमार नामक एक सज्जन ने बेंगलुरू में हिन्दी का पहला ब्लॉग लिखा। पहला वाक्य था, नमस्ते, क्या आप हिन्दी देख पा रहे हैं। यह एक भाषा के लिए उम्मीद की सबसे पहली रोशनी थी। इससे पहले कुछ वेबसाइट थीं, जो हिन्दी फॉन्ट का इस्तेमाल करती थीं, लेकिन वे फॉन्ट यूनिकोड नहीं थे, यानि उन्हें देखने के लिए आपको फॉन्ट डाउनलोड करना पड़ता था। अंग्रेज़ी कहीं भी आसानी से कॉपी-पेस्ट हो जाते हैं, लेकिन हिन्दी में यह मुश्किल था। हिन्दी का यूनिकोड वर्ज़न आ जाने के बाद यह आसान हो गया, लेकिन सवाल यह था कि एक्सएमएल और एचटीएमएल भाषा वाले अंग्रेज़ियत से भरे अंतर्जाल में सूरजमुखी की तरह उग आए ब्लॉग शब्द को हिन्दी में क्या कहा जाए?
24 जुलाई, 2003 को आलोक कुमार लिखते हैं, 'कहीं दूर जब दिन ढल जाए... गाना बज रहा है और मैं लिख रहा हूं ब्लॉग। यार ब्लॉग की हिन्दी क्या होगी, अभी तक नहीं सोच पाया। चलो, दूसरी तरह से सोचते हैं। मैं अपनी दादी को कैसे समझाऊंगा कि यह क्या है? मशीनी डायरी? शायद। वैसे दोनों शब्द अंग्रेज़ी के हैं।' एक शब्द खोजा गया, चिट्ठा, इसीलिए अगर आप हिन्दी ब्लॉगिंग के शुरुआती पन्नों को पलटेंगे तो आपको ये शब्द बार-बार मिलेंगे। रवि रतलामी, फुरसतिया, मसिजीवी, ई-स्वामी, उड़नतश्तरी जैसे ब्लॉगर अब भी चिट्ठा शब्द का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन 2007 यानि पिछले साल जब भारी तादाद में लोगों ने हिन्दी में ब्लॉग बनाए, चिट्ठा शब्द धीरे-धीरे धुंधला पड़ गया।
आज हिन्दी में चार हजार से ज्यादा ब्लॉग है। 2005 के दिसंबर में यह संख्या कुछ सौ की थी। एक टीवी चैनल से जुड़े मेरे पत्रकार मित्र दिलीप मंडल को उम्मीद है कि यह संख्या 2008 में कम से कम दस हज़ार हो जाएगी। अपने ब्लॉग रिजेक्ट माल पर वह लिखते हैं, 'टेक्नोलॉजी जब आसान होती है, उसे अपनाने वाले दिन दोगुना, रात चौगुना बढ़ते हैं। मोबाइल फोन को देखिए। एफएम को देखिए। हिन्दी ब्लॉगिंग फॉन्ट की तकनीकी दिक्कतों से आज़ाद हो चुकी है, लेकिन इसकी ख़बर अभी दुनिया को हुई नहीं है।' अभी बाज़ार की दिलचस्पी हिन्दी ब्लॉगिंग में नहीं है। वजह साफ है, कम ब्लॉगर, कम पाठक। लेकिन जिस तेज़ी से यह संख्या बढ़ रही है और जिस तेज़ी से बड़े घराने हिन्दी में वेबसाइट ला रहे हैं, उससे साफ़ लग रहा है कि हिन्दी सिनेमा और लोक संगीत के बाद अगर सबसे अधिक पॉपुलर कोई इवेन्ट होने जा रहा है, तो वह है ब्लॉग। तब हिन्दी में सिर्फ ब्लॉगिंग करके भी रोज़ी-रोटी कमाई जा सकेगी।
अंग्रेज़ी में कई लोग हैं, जो सिर्फ़ ब्लॉगिंग करके कमा-खा रहे हैं। लैबनॉल ब्लॉग के मॉडरेटर अमित अग्रवाल ने एक बार अपने ब्लॉग पर ख़बर दी कि वह रोज़ाना क़रीब एक हज़ार डॉलर कमाते हैं। उनकी ख़बर की तस्दीक़ गूगल एडसेंस ने भी दी, जो अंतर्जाल पर विज्ञापन बांटने वाली सबसे बड़ी एजेंसी है। ज़ाहिर है, यह रक़म अंग्रेज़ी में ही कमाई जा सकती है। लैबनॉल की ई-मेल ग्राहक संख्या 20000 के आसपास है और अंग्रेज़ी में लैबनॉल जैसे कई ब्लॉग हैं। लेकिन हिन्दी में सबसे अधिक ई-मेल ग्राहक संख्या वाला ब्लॉग रवि रतलामी है और आपको यह जानकर हैरानी होगी कि ये संख्या 200 के आसपास है।

3 टिप्‍पणियां:

डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल ने कहा…

बहुत अच्छी जानकारी. लिखने की शैली भी उतनी ही उम्दा.
बधाई.

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर ने कहा…

bahut bahut aabhar

biharsamajsangathan.org ने कहा…

Very Intersting blog.

Suresh Pandit
Email: biharsamajsangathan@gmail.com
www.biharsamajsangathan.org