सोमवार, 25 फ़रवरी 2008

भास्‍कर में आखों की किरकिरी


दैनिक भास्‍कर जयपुर में सोमवार 25 फरवरी 2008 को विमर्श पेज पर चोखेर बाली की चर्चा हुई है। ब्‍लॉग बतंगड नाम का यह कॉलम हर सोमवार को प्रकाशित किया जा रहा है। पर संपादक या लेखक का नाम नहीं दिया गया है। आपकी सुविधा के लिए यह लेख पूरा दिया जा रहा है। चोखेरबाली की टीम को एक बार फिर बधाई।

आंखों की किरकिरी: चोखेरवाली
तय है कि ब्‍लॉग उदय का एक नया प्रयास कुछ
गुल जरूर खिलाएगा। ईमानदारी की चाशनी में
घुटी ऐसी कोशिश शुरू की है मनीषा पांडे ने अपने ब्‍लॉग
चोखेरवाली से। वह दिल से कहती हैं वे पतित होना
चाहती हैं भले ही इसके समानांतर अच्छी लड़की होने
के नाम से भावुक होकर आंसू टपकाती रहूं। मेरे जैसी
और ढेरों लड़कियां हो सकती हैं, जो अपनी पतनशीलता
को छिपाती फिरती हैं लेकिन अच्छी लड़की के सर्टिफिकेट
की चिंता में मैं दुबली नहीं होऊंगी। मनीषा ने कदम बढ़ाया
तो कई आंखें फटी रह गईं और मुंह बाये देख रही हैं कि
यह पतित पता नहीं क्‍या कर बैठे, पुरुष प्रधान समाज के
कस मानदंड की बखिया उधेड़ दे...लेकन अब कारवां
बन चुका है।
बदलाव की आहट सुनाई देने लगी है और जिन्हें नहीं
सुनाई देती उन्हें ये सुनने को मजबूर कर देंगी। उनके तेवर
कुछ ऐसे हैं कि जिन पुरुषों ने समाज की परिभाषाएं गढ़ी
हैं उनकी आंखों में अंगुलियां डालकर वे एलान करना
चाह रही हैं क तुम गलत हो। वे बताना चाह रही हैं कि
ठीक से हंस लेना केवल तुब्‍हारा ही हक नहीं, पर्दे में
रखकर तुमने गुनाह कया है। वे मांग रही हैं उस आजादी
को जिसे पुरुषों ने अपने घर की बांदी बना रखी है। वे
उन छोटी-छोटी बातों पर ध्यान दिलाती हैं कि क्‍यों घर
की लड़कयों को कहा जाता है छत पर नहीं जाओ, दुपट्टा
हमेशा सिर पर रखो, कसी से ज्यादा हंस-हंस कर बात
नहीं करो, मोहल्ले पर लड़कों की तरह न आया-जाया करो
या फिर घर से बाहर ज्यादा देर तक नहीं रहो...। असल
में मनीषा के बाद पुनीता, सस्ता शेर और फिर मेरी
कठपुतलियां... जैसे ब्‍लॉग उन बातों को कह रही हैं जो
वास्तव में अंधेरी कोठरी में पूर्णमा के चांद की रोशनी
फैला रही हैं। उनकी बातें एक सुहानी सुबह की ओर
इशारा करती हैं। जरा सोचिए इस्मत चुगताई ने 1935 में
उर्दू में `लिहाफ´ लिखी। तब इसे लेकर काफी विवाद हुआ
था। चुगताई ने उस समय ऐसी बातें कहने की हिम्‍मत
दिखाई जब आज से ज्यादा मुश्कलें थीं। 65 साल के
बाद उस पर फिर चर्चा हुई और सन् 2000 में जाकर
उसपर `फायर ´ फिल्म बनी। इसका भी काफी विरोध
हुआ लेकन वह राजनीतिक फायदे के लिए कया गया
विरोध ही कहा जाएगा। कुछ दिनों पहले प्रदर्शित `वाटर´
के साथ भी ऐसा ही हुआ। मतलब जब-जब नारी मुक्ति
की बात होगी तब-तब पुरुष मानसिकता वाले लोग यूं ही
विरोध करेंगे। अब ब्‍लॉग के द्वारा नारी मुक्ति की बातें फिर
की जा रही हैं। उनकी बातें सदियों के अन्याय को सामने
लाती हैं... सच में..।
अब छोटी-सी बात ही लीजिए ब्‍या महिलाएं बिना
बचपन के जवान हो जाती हैं। अब ठुमक-ठुमक चलत
रामचंद्र, बाजत पैजनियां.. पर केवल राम का ही हक ब्‍यों
है ब्‍या केवल कृष्ण ही बाल लीलाएं कर सकते हैं...माता
सीता या फिर राधा ब्‍यों नहीं? वास्तव में कई महान
विभूतियों ने अन्याय कया है।
अब कालिदास का अभिज्ञान शाकुंतलम उठा लीजिए
या फिर मेघदूत हर जगह नारी सौंदर्य का चित्रण है। उनकी
भावनाओं उनके ब्‍यालात को कोई जगह नहीं, ब्‍यों?
ब्रrापुराण में भी ऐसे चित्रण आपको मिल जाएंगे। कई
और पक्ष हैं.. बेटियों के ब्‍लॉग पर जब आप पुनीता से
`बेटियों के ब्‍लॉग´ पर मुखातिब होते हैं तो वे बड़ी
मासूमियत से कठोर सवाल पूछती हैं - बेटियां पराई क्‍यों
होती हैं? एक बेटी की मां का हलफनामा शीर्षक का
उनका लेख तो वास्तव में एक महिला के दर्द को शिद्दत
से बयां करता है। मोहल्ला जैसे कई प्रमुख ब्‍लॉगर इन पर
कान देने लगे हैं और यह बात उठी है कि प्रगतिशीलता
को पतनशीलता कहने की मानसिकता कितनी सही है।
कुल मिलाकर एक कोशिश हो रही है इन बातों को कहने
के लिए लाउडस्पीकर मुहैया कराने की जिससे बात सब
तक पहुंचे, लेकन शोर के रूप में नहीं, सार्थक अथोत में
और शब्‍दों के साथ। नारी मुक्ति की इस नई हवा को सच
में सलाम करने को जी चाहता है।

राजस्‍थान पत्रिका में बेटियों का ब्‍लॉग


राजस्‍थान पत्रिका जयपुर की महिला मैग्‍जीन परिवार में बुधवार 20 फरवरी को बेटियों के ब्‍लॉग पर पूरा एक फीचर छपा है।
आपके लिए यह पूरा की पूरा हुबहू दिया जा रहा है।
आपके पास भी ब्‍लॉग जगत से जुडी कोई खबर हो तो तुरंत सूचित करें।

रविवार, 24 फ़रवरी 2008

हाय रब्‍बा ये क्‍या हो गया


भाई लोगों ब्‍लॉग अपन के जयपुर में तगडा वाला लोकप्रिय हो गया है। डेली न्‍यूज अखबार ने रविवार 24 फरवरी को अपने परिशिष्‍ठ हमलोग में अपन के सुधाकर सोनीजी ने ब्‍लॉग लिखने के शौकिन चोर को पकडवा दिया है।
सुधाकरजी और हमलोग के संपादकजी को बधाई

सोमवार, 18 फ़रवरी 2008

भास्कर के विमशॅ में ब्लॉग-बतंगड़


दैनिक भास्कर जयपुर ने सोमवार १८ फरवरी से साहित्य पर एक विशेष पेज का प्रकाशन शुरू किया है। इसमें ब्लॉग बतंगड़ नाम का एक कॉलम भी शायद छपा है जिसका शीरषक है-चाहूं भी तो खोल नहीं सकती उस घर के दरवाजे--। इस लेख में रवि रतलामी के ब्लॉग पर रचना श्रीवास्तव की पोस्ट है। इसके अलावा इरफान और नसीरुद्दीन, कृपाशंकर का भी जिक्र है। ओमप्रकाश तिवारी के मीडिया नारद ब्लॉग पर फिल्मी गीतकारों और लेखकों को साहित्यकार का दरजा नहीं देने की बहस की भी चरचा है। इस लेख को आप फोटो पर क्लिक करके पूरा पढ़ सकते हैं।

शनिवार, 16 फ़रवरी 2008

बिजनेज स्‍टैंडर्ड हिंदी की पहली एंकर स्‍टोरी ही ब्‍लॉग पर


शनिवार 16 फरवरी को बिजनेस स्‍टैंडर्ड का हिंदी संस्करण रिलीज हुआ। पहले ही अंक में प्रंट पेज की एंकर स्‍टोरी ब्‍लॉग केंद्रित है। खबर का लब्‍बोलुबाव सेलिब्रिटिज के ब्‍लॉगर्स पर केंद्रित है। स्‍कैन्‍ड या ऑनलाइन होने के कारण इसकी इमेज आप तक नहीं पहुंचायी जा सकी है। कोशिश है कि कल यह कमी पूरी कर दूं। राजेश एस कुरुप की यह खबर हूबहू प्रकाशित की जा रही है।
अब उतर आए तारे जमीं पर
राजेश एस कुरूप
मुंबई, 15 फरवरी चाहे वह फिल्‍म हो या खेल, कला हो या साहित्‍य हर क्षेत्र की हस्तियों से मिलने के लिए लोग दीवानगी की हद तक पहुंच जाते हैं। इसके लिए वह मुंबई, कोलकाता या फिर सात समुंदर पार कहीं भी जाने या कैसी भी मुश्किलों को पार करने के लिए तैयार रहते हैं। उसके बाद भी कई बार उनकी हसरत पूरी नहीं हो पाती। मगर अब ऐसा नहीं है क्‍योंकि ये चमचमाते सितारे अब खुद उनके घर की सरजमीं पर आने लगे हैं। जिससे उनके इन दीवानों के लिए खुदाई मददगार बनकर आए हैं, ब्‍लॉग। यकीन नहीं आता तो राजेश शर्मा की ही मिसाल लीजिए, जो कभी शाहरुख खान की झलक पाने के लिए बांद्रा में उनके बंगले मन्‍नत के सामने घंटों खडे रहते थे। दीवानगरी की इंतहा पर पहुंच चुके इस शख्‍स को जिस दिन शाहरुख बंगले से निकलकर कार में चढते दिख जाते थे, तो उस दिन वह खुद को दुनिया का सबसे खुशकिस्‍मत आदमी समझने लगते थे। लेकिन मन्‍नत पर टकटकी लगा कर घंटो रहना अब उनके लिए भी गुजरे जमाने की बात हो चुकी। क्‍योंकि अब तो उनकी रोजाना शाहरुख से बातें होती हैं। शर्मा तो फिल्‍मों और अभिनय के बारे में उन्‍हें सलाह तक दे डालते हैं। और यह सब ठाणे में अपने घर में ही बैठकर करते हैं। इसी तरह एक और खान आमिर खान भी अपने ब्‍लॉग को कभी नहीं भूलते वह अपने ब्‍लॉग पर 50 संदेश डाल चुके हैं। वह इसके जरिए सामाजिक मसले उठाने से भी नहीं चूकते। जैसे, एक संदेश में उन्‍होंने पाइरेसी के खिलाफ आवाज उठाई। उन्‍होंने कहा, मैं उन लोगों से खफा हूं, जिन्‍होंने तोर जमीं पर फिल्‍म पाइरेटेड सीडी डीवीडी या केबल या किसी वेबसाइट पर देखी। बहरहाल, नामचीन लोगों की कतार में मैनेजमेंट गुरु दीपक चौपडा, अभिनेता राहुल बोस, अनुपम खेर, शेखर कपूर, राहुल खन्‍ना, सांसाद मिलिंद देवडा और क्रिकेटर पार्थिव पटेल भी शामिल हैं।

शुक्रवार, 15 फ़रवरी 2008

भास्‍कर की वेब पर रतलामीजी और इरफान का जिक्र


दैनिक भास्‍कर की वेबसाइट में ‘गणतंत्र के झंडे में लपेटकर, प्रिय भारत की माटी में” शीर्षक से एक लेख है। इसमें हिंदी ब्‍लॉग जगत का उल्‍लेख है। इसमें श्री रवि रतलामीजी इरफान और ओमप्रकाश तिवारी का जिक्र है। यह आलेख विधान निगम ने लिखा है, वो मप्र में कही रिपोर्टर हैं। पर यहे आलेख प्रिंट में किस एडिशन में छपा इसकी जानकारी नहीं। क्‍यूंकि जयपुर में यह दिखाई नहीं दिया। वैसे वाडनेकर साहब हमारी कुछ मदद कर सकते हैं। यदि किसी को प्रिंट एडिशन की जानकारी हो तो तुरंत सूचित करे।
आपकी सुविधा के लिए यह पूरा लेख हूबहू दिया जा रहा है।
गणतंत्र के झंडे में लपेटकर, प्रिय भारत की माटी में
विधान निगम
Thursday, February 14, 2008 05:49 [IST]
ब्लॉग यायावरी. हिंदी ब्लॉग जगत हिंदी साहित्य और आलोचना का समानांतर प्लेटफॉर्म बनने की ओर तेजी से कदम बढ़ा रहा है। उससे यह धारणा गलत साबित होती जा रही है कि हिंदी में नई पीढ़ी के अच्छे कवियों और लेखकों का अभाव है। इन्हें पढ़कर कोई भी समझदार व्यक्ति यह सोचने पर मजबूर हो सकता है कि हिंदी साहित्य प्रकाशन लेखन माफिया की गिरफ्त में तो नहीं..? अगर ऐसा न होता तो साहित्य के नाम पर हिंदी में सिर्फ जमे हुए बूढ़े (लेकिन अच्छे भी) और घटिया नवांकुर लेखकों की किताबें नजर न आतीं।
इस हफ्ते कई ब्लॉग्स पर अच्छी रचनाएं देखने को मिलीं। रवि रतलामी ने अमेरिका में रहने वाली रचना श्रीवास्तव की कविता तेरे बिना पोस्ट की है। आप भी पढ़िए ..
एक शाम जब हम बैठे थे साथ थाम के मेरा झुर्रियों भरा हाथ तुमने कहा था.. ऐ जी हो गए कितने सालचलते-चलते यूं ही साथ35 साल है न मैंने होले से कहा तुम मुस्कुरा दींफिर चहक के बोलीं कौन-सा दिन था सबसे प्याराजो बीता मेरे साथ, मैं चुप रहा कुछ तो बोलो तुमने तुनक के कहाअरे! मेरी पगली तेरे इस अजब सवाल का कोई जवाब दे कैसे ?दुआओं भरी पोटली हो जब सामने कोई एक दुआ उनमें से चुने कैसे..?तन्हा हूं, तन्हाई से डरता हूंउदास हुआ नहींजब बच्चे घर से उस वक्त टूटा नहींजब नाता तोड़ा हमसे बिखरा नहीं तब भी जब पोतों को दूर रहने को कहा गया हमसे सब कुछ सहा पर अब तेरे जाने के बाद बिखर गया हूंअकेला तेरी यादों के साथ रह गया हूं।इरफान के ब्लॉग पर भी बहुत अच्छी कविता मिलेगी.. ‘मुलाकात’फिर तुमने अपने ठंडे पोरों से छुआ बुधवार था और आसमान से नमी की चादर हमें ढंकने आई...उस नीम ठंड में हम सतह की हवा को हलका बनाते रहे।
ओमप्रकाश तिवारी ने अपने ‘मीडिया नारद’ ब्लॉग पर एक विचारोत्तेजक लेख पोस्ट किया है। इसमें यह सवाल उठाया गया है कि फिल्मी लेखक और गीतकार को साहित्यकार का दर्जा क्यों नहीं मिलता? उन्होंने बहुत तार्किक ढंग से अपनी स्थापना दी है कि फिल्मी लेखक और गीतकार बाजार नियंत्रित हैं लेकिन साहित्यकार नहीं। जैसे सेल्समैन और सृजनकर्ता की तुलना नहीं की जा सकती वैसे ही इनकी भी बराबरी नहीं की जा सकती। साहित्यकार मूल्यों का सृजन करता है जबकि फिल्मी लेखक सृजित मूल्यों को बेचता है।
और अंत में ..
एक कविता ढाई आखर पर नसीरुद्दीन ने तसलीमा नसरीन की दो ताजा कविताएं पोस्ट की हैं ये कविताएं तसलीमा ने कैद ए तन्हाई में बांग्ला में लिखी थी जिनको हिंदी में ढाला है पत्रकार कृपाशंकर ने। ये कविताएं बताती हैं कि हम किस दौर में रह रहे हैं..
‘जिस घर में रहने को मुझे बाध्य किया जा रहा है’इन दिनों मैं ऐसे एक कमरे में रहती हूं,जिसमें एक बंद खिड़की है,जिसे खोलना चाहूं, तो मैं खोल नहीं सकती खिड़की मोटे पर्दे ढंकी हुई है. चाहूं भी तो मेैं उसे खिसका नहीं सकतीइन दिनों मैं ऐसे एक कमरे में रहती हूं चाहूं भी तो खोल नहीं सकती, उस घर के दरवाजे..वे भी शायद होंगी उस दिन गणतंत्र के झंडे में लपेटकर, प्रिय भारत की माटी में,कोई मुझे दफन कर देगा। शायद कोई सरकारी मुलाजिम खैर, वहां मुझे भी नसीब होगी, एक अल्प कोठरी। उस कोठरी में लांघने के लिए, कोई दहलीज नहीं होगीवहां भी मिलेगी मुझे एक अदद कोठरी,लेकिन, जहां मुझे सांस लेने में कोई तकलीफ नहीं होगी।

बुधवार, 13 फ़रवरी 2008

बेटियों के ब्‍लॉग की चर्चा आगरा के डीएलए में


आगरा से प्रकाशित होने वाले डीएलए के नेशनल पेज (पेज 17) पर 11 फरवरी को बेटियों के लिए ब्‍लॉग की चर्चा हुई है। बेटियों के ब्‍लॉग की पूरी टीम को ब्‍लॉग खबरिया की ओर से बधाई।

अब बेटियों के लिए बना ब्‍लॉग नई दिल्‍ली। इंटरनेट पर हिंदी की उपस्थिति लगातार बढती जा रही है। ब्‍लॉग के जरिए तो इसमें और इजाफा हो रहा है। ब्‍लॉग जगत में इन दिनों एक नए तरह के ब्‍लॉग का उदय हुआ है। खास बात यह कि इस विशेष ब्‍लॉग पर केवल और केवल बेटियों की ही चर्चा हो रही है।
बेटियों का ब्‍लाग एक ऐसा ही ब्‍लॉग है, जहां ब्‍लॉगर माता पिता अपनी बेटियों के बारे में बातें लिखते हैं। यह एक सामुदायिक ब्‍लॉग है। एक ही छतरी के नीचे कई ब्‍लॉगर माता पिता इकटठा होकर अपनी बेटियों के बारे में तरह तरह की बातें लिखते हैं। फिलहाल इस ब्‍लॉग के ग्‍यारह सदस्‍य है। सभी लगातार ही अपनी घर के क्‍यारी की बिटिया के बारे में लिखते रहते हैं। इस ब्‍लॉग की चर्चा इन दिनों हर जगह हो रही है। काफी कम समय में यह ब्‍लॉग लोकप्रिय हो गया है। इस ब्‍लॉग को शुरू करने वाले अविनाश दास ने अपने पहले पोस्‍ट में लिखा, ये ब्‍लॉग बेटियों के लिए है।