शुक्रवार, 18 जनवरी 2008

दैनिक भास्‍कर में हुई मीडिया मीमांसा की चर्चा


दैनिक भास्‍कर के राष्‍टीय संस्‍करण में शनिवार 12 जनवरी को ओपएड पेज पर ब्‍लॉग वॉच कॉलम में अपने उमेश चतुर्वेदी जी का जिक्र है। र‍वींद्र दुबे जी ने टीआरपी की दौड में भाषाओं के हथियार शीर्षक से एक पूरा लेख लिखा है। उमेशजी मीडिया मीमांसा नाम से ब्‍लॉग लिखते है और टेलीविजन पत्रकार है ब्‍लॉग खबरिया की ओर से उनको बधाई।
टीआरपी की दौड़ में भाषाओं के हथियार
चाहे रीतिकाल की हाला और प्‍याला वाली कविता रही हो या फिर वीरगाथा काल की बहादुरी भरी रचनाएं, अलंकारों के जरिए भाषा को मांजने और चमकाने की जो परंपरा शुरू हुई, वह आधुनिक काल के कवि मैथिलीशरण गुप्‍त तक चलती रही। आधुनिक
साहित्य में काव्य शास्त्र के इस अहम आभूषण की एक बार फिर से जोरदार वापसी हुई है। आपको भरोसा नहीं हो रहा है तो देखिए ना खबरिया चैनलों की स्टोरियां। काव्यशास्त्र के विद्वान और अलंकारों के सिद्धांतकार आचार्य कुंतक की आत्मा अगर स्वर्ग में होगी तो अपने अनुप्रास अलंकारों के इस नए अवतार को देखकर खुश हो रही होगी। आप भी जरा याद कीजिए ना
- आफत में आशियाना, जिंदगी की जंग,
मनमोहन की मनुहार, सिंगुर का संग्राम,
नंदीग्राम में संग्राम, जासूस कहां है जसवंत,
म मी मैं आ रहा हूं, निठारी के
नरपिशाच....।
मौजूदा दौर की टीवी पत्रकारिता पर यह चुटकी लेने वाले कोई उमेश चतुर्वेदी हैं, जिन्होने मीडियामीमांसा नामक ब्‍लॉग ब्‍लॉगस्पॉट पर शुरू किया है। वे आगे लिखते हैं कि टीआरपी की दौड़ में आगे बने रहने के लिए भाषा भी हथियार बन रही है। इसके पीछे अंग्रेजी के कुछ शब्‍दों की बड़ी भूमिका है। ये शब्‍द हैं-अपमार्केट और डाउनमार्केट। अब आप सोचेंगे कि शब्‍दों के इस विवेचन खेल में अंग्रेजी के ये शब्‍द कहां से आ गए।
लेकिन टीआरपी को खुश रखने के लिए इन तीनों शब्‍दों का ही सहारा लिया जाता है। दरअसल आज की बदलती दुनिया में खाए-अघाए लोगों का एक वर्ग भी विकसित हो चुका है, टीआरपी की माया भी इसी वर्ग को लुभाने और खुश करने की है – क्‍योंकि यही वह वर्ग है - जिसके पास खरीद की क्षमता है। खबरिया चैनलों को विज्ञापन देने वाले तभी विज्ञापन देंगे, जब ये वर्ग उनके सामानों और उत्पादों की खरीदारी करेगा।
37 वर्षीय चतुर्वेदी पेशे से टेलीविजन पत्रकार हैं और उनके इस ब्‍लॉग का नाम है सूचना संसार। बहरहाल उन्होंने अपने इस ब्‍लॉग में जन सामान्य के पाठकवृंद को टीआरपी से संबंधित कई जानकारियां दी हैं कि किस तरह गांवों का इलाका डाउन मार्केट श्रेणी में आता है और क्‍यों उन पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता है। उनका कहना है कि भारत के कई इलाके इस टीआरपी रेटिग के परे हैं और बावजूद वहां पर ढेरों खबरें होने के उन्हें पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया जाता है। इस ब्‍लॉग पर दिलचस्प सामग्री और भी है।
मसलन उन्होंने फिल्म पर कुछ नए विचार व्यक्‍त करने के दौरान फिल्म और साहित्य या रचनाधर्मिता के अंतद्वर्द्व को जाहिर किया है। यानी कुछ जानीमानी रचनाओं पर जब फिल्में बनी या बनाई गई तो उनमें कुछ परिवर्तन किया गया। कुछ रचनाकारों ने तो इसे बर्दाश्‍त कर लिया लेकिन कुछ लेखकों ने कसम खा ली कि आगे से अपनी कोई भी रचना वे फिल्मोद्योग को नहीं देंगे।
इसके अलावा इसी ब्‍लॉग पर दिनमान पत्रिका के सहायक संपादक रहे जितेंद्र गुप्‍त का साक्षात्कार भी है, जिसमें उन्होंने भारतीय पत्रिका के बदलते हुए स्वरूप के बारे में अपने विचार व्यक्‍त किए हैं। एक वरिष्ठ पत्रकार का यह
इंटरव्यू कई मायनों में काफी जानकारीपरक है, जिसमें आजादी के बाद से आज के मौजूदा दौर तक की पत्रकारिता की कथा यात्रा का पूरा-पूरा लेखाजोखा ज्यों का त्यों रख दिया गया है। ये सब कुछ ऐसे मुद्दे हैं जो एक तरफ तो नए हैं दूसरी तरफ सामान्य हिंदी प्रेमी पाठकों के लिए उपयोगी भी हैं।
आप सोच सकते हैं कि ऐसी कौन सी बात है जो मैं मात्र किसी एक ब्‍लॉग का इतना लंबा चौड़ा बखान किए जा रहा हूं। ऐसे में आपकी जानकारी के लिए मुझे बताना ही पड़ेगा कि अंग्रेजी में मीडिया पर इंडियनटेलीविजनडॉटकॉम या दी हूट ऑट ओर्ग जैसी अनेकों ब्‍लॉग्स और साइटें मौजूद हैं, जो मीडिया और उसके कई संचार माध्यमों का पूरा-पूरा
पोस्टमार्टम किए रहती हैं। लेकिन हिंदी में मीडिया पर मीडिया मीमांसा या सूचना संसार फिलहाल एकमात्र साइट है, जिसने मीडिया और उसकी विषयवस्तु जैसे संवेदनशील मुद्दों की तरफ ध्यान खींचने का एक सराहनीय प्रयास किया है। यदि इसे यूं भी कहा जाए कि इस तरह के मुद्दों पर होने वाली बहसें हिंदी पत्रकारिता जैसे विषय पर एक सार्थक पहल की शुरूआत
है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। आखिर मीडिया को कटघरे में खड़ा करना किसी मीडियाकर्मी के लिए दरिया में रहकर मगर से बैर मोल लेने वाली बात है और कहना न होगा कि इसके लिए काफी साहस की जरूरत होती है जिसके लिए चतुर्वेदी सचमुच साधुवाद के पात्र हैं।

2 टिप्‍पणियां:

Dr Parveen Chopra ने कहा…

चतुर्वेदी जी के साथ साथ आप का भी बहुत बहुत आभार जो आप यह खबर बलागर्स तक इतनी मेहनत से ले कर आए। आगे भी हमें ऐसी पोस्टिंग्स की प्रतीक्षा रहेगी।

Sanjeet Tripathi ने कहा…

शुक्रिया इसे यहां उपलब्ध करवाने का!